Media

Subhash Ghai: संस्कृत ही होगी आने वाले भारत की उत्कृष्ट संवाद भाषा, मुंबई में सुभाष घई ने बताई इसकी ये वजह

निर्माता-निर्देशक सुभाष घई की फिल्म ‘कर्मा’ का गीत 'हर करम अपना करेंगे, ऐ वतन तेरे लिए, दिल दिया है जान भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए' हर साल राष्ट्रीय पर्व पर खूब बजता है। इस साल स्वतंत्रता दिवस से ठीक पहले घई ने इसका एक संस्कृत संस्करण रिलीज कर देशवासियों को नायाब तोहफा दिया है। बुधवार की शाम मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान इस गाने की लांचिंग के अवसर पर सुभाष घई ने कहा कि हमारी संस्कृत की भाषा हजारों साल से है। विश्व ने माना है कि संस्कृत सब भाषाओं की माता है। कई देशों में संस्कृत के स्कूल हैं लेकिन हमारे देश में इस भाषा को इतना पीछे रख दिया गया कि लोग इस भाषा को भूलने लगे हैं, लेकिन अब समय आ गया है जब यह जरूरी हो गया है कि देश की तरक्की के साथ साथ संस्कृत भाषा का भी ज्ञान होना बहुत जरूरी है।


निर्माता-निर्देशक सुभाष घई कहते हैं, 'भाषा से कोई इंटेलिजेंट नहीं होता है। बल्कि बुद्धि और विवेक से होता है। संस्कृत ऐसी भाषा है, जो आपको बुद्धि भी देती है और महान भी बनाती है। हर मां बाप की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने बच्चों को संस्कृत की महत्ता को समझाए। मैं समझता हूं कि अब समय आ गया है जब हमें अपनी संस्कृति, अपनी भाषा को समझना चाहिए। इसको प्राथमिकता देना चाहिए। और, जो हमारे बच्चे हैं उनको यह बताना चाहिए कि यह जरूरी नहीं कि जो अंग्रेजी बोलते हैं वह बहुत होशियार हैं। मैं आज इस दावे के साथ कह सकता हूं कि आने वाले 40 साल के बाद जिस तरह से हमारी सरकार इस भाषा के उत्थान की बात कर रही है, हर बच्चा संस्कृत में बात करेगा।'

जिस तरह से अंग्रेजी भाषा को आज के युवा अपना रहे हैं, वह दिन दूर नहीं जब अंग्रेजी भाषा कॉमन भाषा हो जाएगी। सुभाष घई कहते हैं, 'जब हम अपनी मातृ भाषा हिंदी, मराठी, बांग्ला में बात करते हैं और किसी सामने वाले को अंग्रेजी में बात करते देखते हैं तो हमारा ध्यान तुरंत उसकी तरफ चला जाता है, क्योंकि वह अंग्रेजी बोलता है। आज के 40 साल के बाद तो एक आम मजदूर भी अंग्रेजी में बात करेगा। तब यह कॉमन भाषा हो जाएगी, फिर जो संस्कृत में बात करेगा। उसकी तरफ सब देखेंगे कि बड़ा बुद्धिमान व्यक्ति है।'

जन्म से लेकर मरण तक जितने भी क्रिया कर्म होते हैं, सब जगह संस्कृत में मंत्रों का प्रयोग किया जाता है। सुभाष घई कहते हैं, 'जन्म से लेकर मृत्यु तक जितने भी क्रिया कर्म होते हैं, सब जगह संस्कृत में ही मंत्र पढ़े जाते है। लेकिन हम मंत्रों का मतलब नहीं समझते हैं, सिर्फ पंडित जी पर छोड़ देते हैं कि आप मंत्र पढ़ दीजिए। आपके मंत्र के माध्यम से हम भगवान से प्रार्थना कर लेंगे। हम रोज गायत्री मंत्र पढ़ते हैं, इसे महामंत्र कहा जाता है, लेकिन इसका अर्थ किसी को नहीं पता है। यह बात मुझे बचपन से ही बहुत चुभती थी कि यह क्या बात हुई? विश्व ने माना हैं कि संस्कृत सब भाषाओं की माता है। कई देशों में संस्कृत के स्कूल हैं। लेकिन हमारे देश में इस भाषा को इतना पीछे रख दिया गया। तभी मुझे ख्याल आया है कि 'ऐ वतन तेरे लिए' को संस्कृत संस्करण में रिलीज किया जाए ताकि आज के युवाओं को संस्कृत सीखने की प्रेरणा मिल सके।’

Source : Amarujala.com